एक बार स्वामी विवेकानंन्द जी किसी से मिलने गए। वहाँ उस व्यक्ति ने मूर्ति पूजा पर व्यंग किया। और कहा कि यह अंध विश्वास है। स्वामी जी ने पीछे दीवार पर लगे एक चित्र को देखकर पूछा यह किसका चित्र है?
व्यक्ति ने कहा यह मेरे पिताजी का चित्र है। स्वामी जी ने कहा कि आप इस चित्र को तुरन्त जमीन पर गिरा दीजिए और इस पर अपने पैर रक्खकर थूक दीजिए। व्यक्ति क्रोधित होकर बोला यह मेरे पिताजी का चित्र है, और आप यह कैसे कह सकते हैं यह तो इनका अपमान है। जो की क्षमा योग्य नहीं है।स्वामी जी शान्त भाव से बोले यह तो मात्र आपके पिता का चित्र है ,आपके पिता नहीं फिर उनका अनादर कैसे हुआ? वह व्यक्ति निरूतर था।
सच तो यह है कि आपकी भावना आस्था,श्रद्वा इस चित्र से जुड़ी है। क्योंकि यह आपके पिता का है। आप इसे अपने पिता का स्वरुप मानते हैं इसलिए आप इसको नीचे नहीं गिरा सकते। और इसका अनादर नही कर सकते और ना ही इसका अनादर सह सकते हैं। इसी तरह से प्रत्येक सनातनी अपने ईष्ट की मूर्ति और चित्र को उनका प्रत्यक्ष स्वरूप मानता है। इसलिए हम सभी उनको Shradha और Bhakti से पूजते हैं। यह हमारा अंधविश्वास नहीं हमारी आस्था और श्रद्धा है जिसका आपको सम्मान करना चाहिए।
यह प्रसंग बताता है कि जिस Bhagwan पर हमारी आस्था प्रेम और विश्वास है उसका चित्र हो या मूर्ति हमें वह भी भगवान की तरह प्रिय है। क्योंकि उससे हमारी भावनाऐं जुड़ी होती हैं। फिर हम उनके चित्रों और मूर्तियों का जाने अन्जाने दुरउपयोग क्यों करते हैं? आस्था श्रद्धा निजि है , और आज उसका भी व्यवसायीकरण होने लगा है। जहाँ देखो वहीं मूर्तियों और चित्रों की बिक्री हो रही है। लोग उपहार में Devi Devtao की मूर्तियाँ देने लगे हैं। और वे कुछ समय तक ड्राइंगरूम की शोभा बनती हैं और पुरानी होने पर उनको कबाड़ की तरह इधर उधर फेंक दिया जाता है।
हमारे घर के मंदिरों की मूर्तियाँ जिनको हम Shradha से पूजते हैं उन्हें पुराना या खंडित होने पर किसी पेड़ के नीचे पटक दिया जाता है!? और कुछ समय बाद उन मूर्तियों को सफाई कर्मचारी कूड़े में फेंक देता है?तो फिर क्या किया जाए जिससे इनका अनादर ना हो। इसके लिए प्रत्येक सनातनी को ठोस कदम उठाने होंगे। हमें उपहार में देवी देवताओं की तस्वीर लेने देने से बचना चाहिए। सदैव स्वंय ही खरीदें। देवी देवताओं की मूर्तियाँ संजावट के लिए प्रयोग ना करें। क्योंकि देवी देवता का स्थान मंदिर है जहाँ पवित्रता से उनका पूजन करना चाहिए। अपने मंदिर में उतनी ही तस्वीर ,मूर्ति रक्खें जो जरूरी हों या जिनकी आप आसानी से सेवा कर सकते हों।
आवश्यक्ता से अधिक तस्वीर मूर्तियाँ अकारण ही उपेक्षित होती हैं। और उन पर धूल चढ़ती रहती है।
बाजार में अगर किसी भी उत्पाद पर देवी देवता का चित्र है तो उसे ना ही खरीदे तो अच्छा है। क्योंकि खाली पैकिट कचरे में चला जाता है। और उस पर बने देवी देवता का अनादर होता है। अगर वस्त्रों पर किसी भी प्रकार के वस्त्र हों उन पर Devi Devta का चित्र ना तो बनवाऐं और ना ही ऐसे वस्त्र खरीदें। क्योंकि वे वस्त्र अन्य गंदे वस्त्रों के साथ धुलेगें और पुराने होने पर कचरे में फेके जाऐंगे।
अगर कोई प्रतिमा चित्र खंडित या पुराना हो गया है तो उसे यूँ ही ना फेंके। आज कल मंदिरों में या कुछ संस्थाऐं कुछ धन ले कर उसका सही विसर्जन कर देते हैं। उन्हीं को यह चित्र और प्रतिमाऐं देने चाहिए। अपने मंदिर में सदैव छोटे चित्र और मूर्ति रखनी चाहिए जिससे उनका रख रखाव व सेवा आसानी से हो सके। पूजा के कपड़े,आसन,वस्त्र सभी कपड़ों से अलग धोने चाहिए। व पूजा के बर्तन जूठे बर्तनों से अलग माँजने चाहिए। माँजने का जूना भी अलग स्वच्छता से रखना चाहिए।
शौक शौक में Murti ,चित्र,शंख,मालाएं,पवित्र वस्तुऐं खरीदने से पहले यह जरूर सोचें कि क्या आपको इसकी जरूरत है? क्या आप इसका सही ढंग से रख रखाव करने में सक्षम हैं? और भेंट में तो कभी भी ना दें तो अच्छा है। क्योंकि सामने वाला इसका कितना आदर करेगा आपको और स्वंय उसको भी मालूम नहीं होता।
अगर कोई तीर्थ स्थान से आपसे कोई विषेश वस्तु मंगाए तो निसंकोच उसका मूल्य ले लें। क्योंकि इसमें उस वस्तु के अनादर की आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। यह भी सच है अगर आपके द्वारा या आपके द्वारा दी गई किसी Murti या चित्र का अनादर होता है तो उसके दोष का भागीदार आपको भी बनना पड़ता है। देवी देवता सजावट या दिखावे के लिए नहीं हैं। ये अत्यंत पवित्र विग्रह हैं। इनका अत्यंत पवित्रता और श्रद्वा से सेवा व नित्य पूजन होना चाहिए। अन्यथा समय अभाव में मंदिर जाकर पूजन करना बेहतर है।