सनातन धर्म में कोई भी विषेश पूजा हो उसमें कलश अवश्य रक्खा जाता है। कलश चाँदी,मिट्टी,ताँबे का बर्तन होता है। इसको चावल की ढेरी पर देवता के साथ बाँयी ओर स्थापित किया जाता है। इसमें मंत्रोउच्चारण करके जल भरा जाता है।
साथ ही सुपारी,सिक्का,रोली,चावल,दूर्वा भी डाली जाती है। इसमें पाँच आम या अशोक के पत्ते रख कर बीच में कच्चा नारियल जटा सहित लाल वस्त्र या मौली बाँध कर रक्खा जाता है। इस कलश के चारो ओर कुमकुम की बिन्दी लगाते हैं। व उस कलश को मौली बाँधते हैं। कलश का पूजन फल फूल मिठाई,चावल कुंमकुंम और धूप दीप दिखा कर की जाती है।
कलश में सम्पूर्ण देवताओं का वास माना जाता है। कलश में जल डालते हुए वरूण देवता का आवाहन किया जाता है। क्योंकि वरूण देव से चौदह प्रकार के आर्शीवाद प्राप्त होते हैं। समुद्र मंथन में चौदह प्रकार के रत्नों की निधि प्राप्त हुई थी उसी प्रकार वरूण देवता भी चौदह निधियों की प्राप्ति का आशीष देते हैं। इसके साथ ही कलश में सभी नदियों और समुद्रों का वास होता है। कलश के मुख पर भगवान विष्णु का वास माना जाता है और गर्दन पर भगवान शिव का वास होता है। कलश के तले पर भगवान ब्रहमा जी का वास होता है।
कलश के बाहरी भाग पर तैंतीस कोटी देवता का वास स्वंय होता है। कलश का सर्वप्रथम निर्माण की कथा यह है कि एक बार देवताओं ने त्रिदेवों ने अपने स्थान के ल़िए निवेदन किया तब भगवान शिव ने सर्वप्रथम मिट्टी के घड़े का निर्माण किया व उसके साथ उस घड़े को कलश कहा और उसमें सभी देवी देवताओं का,नदीयों ,समुंद्र,धन धान्य,सौभाग्य का वास कलश में किया गया।
कलश में चारों ओर लगने वाली चार बिन्दियाँ धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की प्रतीक हैं। कलश के उपर आम के पत्ते सर्वथा अक्षय हरे भरे स्वस्थाय का सौभाग्य का प्रतीक हैं। एक आम के पत्ते ही हैं जो कभी नहीं झड़ते। हमेशा अक्षय रहते हैं। कलश का नारियल लक्ष्मी गणेश जी का प्रतीक है। नारियल पूर्णता का भी प्रतीक है। अर्थात मानव जीवन में पूर्णता की प्राप्ति हो।अर्थात जीवन,ज्ञान,आरोग्य,धन धान्य सुख सौभाग्य,सफलता,उन्नति से पूर्ण जीवन का प्रतीक है। कलश का पूजन सारी प्रकृति,देवी देवताओं का पूजन है।उन्हें रोली चन्दन,अक्षत,पुष्प, फल नवैध धूप दीप से पूजा जाता है।और पूजन और जीवन की पूर्णता की हाथ जोड़कर प्रार्थना की जाती है।