नाड़ी परिक्षण एक ऐसी विधि है जो सारे शरीर को खंगाल कर वैध द्वारा बतायी जाती है कि रोग की जड़ क्या है।
यह आयुर्वेद की ही मुख्य विधि है।जिसे सीखे बगैर वैध नहीं बना जा सकता।आज यह स्थिति है कि रोग की उपरी जानकारी के आधार पर ही इलाज होता है।हजारों,लाखों का खर्च भी वहन करना होता है।फिर भी रोगी ठीक नहीं होते।
हमारे वेदों ने मानव शरीर की एक-एक नाड़ी,प्रकृति,व्यवाहर व उससे जुड़े खान-पान और आदतों पर इतना गहन रिसर्च किया हुआ है कि उसका मुकाबला आज भी नहीं किया जा सकता है।नाड़ी चिकित्सा में मानव शरीर में होने वाली सभी नख से लेकर शिखा तक होने वाले सामान्य से लेकर आसाध्य रोगों का इलाज होता है।
कैंसर,मिर्गी,हार्ट की समस्या,घुटने,महिला व पुरुषों के समस्त रोग,लकवा,थाइराइड,नसों का,कमर का दर्द,कोई भी शरीर संबधी रोगों का सफलता पूर्वक इलाज किया जा सकता है।
आयुर्वेद में विशेष निर्देश है कि नाड़ी परिक्षण किए बिना इलाज नहीं किया जाना चाहिए।नाड़ी परिक्षण मुख्य विधी है वैध के लिए।इन नाड़ियों द्वारा वात-पित कफ का सन्तुलन पता किया जाता है।इन तीनों के संतुलन के बिगड़ने से ही सभी रोगों की उत्पत्ति होती है।
दक्ष वैध रोगी से रोग नहीं पूछता सीधा नाड़ी पकड़ कर रोग और उसकी जड़ पकड़ कर उसका इलाज सहज ही कर लेता है।नाड़ी परिक्षण में मुख्यतःहमारे हाथ की कलाई,उँगलियाँ,हथेली के विभिन्न बिन्दुओं को जाँच कर उसका पता लगाया जाता है।इसके अलावा गर्दन,कमर,पेट की नाभी की नसों की भी रोग के अनुसार जाँच की जाती है।
वैध रोग का पता लगा कर उसके लिए मुख्यतः खान-पान का परहेज बताते हैं।सामान्य रोग उसी से ठीक हो जाते हैं।इसके सिवा योग,मालिश और आसाध्य रोगों में औषधी का भी प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद मानव की आयू और स्वास्थ कैसे बढ़े उस पर आधारित है।अपने सही जीवन शैली और खान पान से कैसे स्वस्थ रहा जाय इसकी पूरी स्टीक जानकारी देता है।जिसका लाभ प्रत्येक व्यक्ति को उठाना चाहिए।