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Reading: पंचकर्म चिकित्सा क्या है? और इसके फायदे
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Latest News Villa > हेल्थ एंड फिटनेस > पंचकर्म चिकित्सा क्या है? और इसके फायदे
हेल्थ एंड फिटनेस

पंचकर्म चिकित्सा क्या है? और इसके फायदे

Amit Rajput
Last updated: 2023/08/04 at 11:57 PM
Amit Rajput Published August 4, 2023
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6 Min Read
What is Panchakarma therapy and its advantages-compressed
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पंचकर्म चिकित्सा आयूर्वेद में शरीर के विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाता है।शरीर को शुद्ध किया जाता है।पंचकर्म चिकित्सा के विषय में  हमारे अनेकों प्रश्न होते हैं।

पंचकर्म चिकित्सा क्या है? कौन कर सकता है? कब करना है? शास्त्रोक्त विधि क्या है? इसे करते समय क्या क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?

पंचकर्म में आयूर्वेद के अनुसार दो प्रकार की चिकित्सा की जाती है।शमन चिकित्सा और शोधन चिकित्सा।

शमन चिकित्सा में रोग के अनुसार रोगी को औषधी दी जाती है।यह औषधी गोली,काढ़े,चूर्ण,पिष्टी,भष्म या किसी औषधी का रस दिया जाता है।इससे रोग शान्त हो जाता है।इसे शमन चिकित्सा कहते हैं।

शोधन चिकित्सा – कई बार शरीर में अशुद्धी बढ़ जाती है।दवा लेने के बाद भी रोग बार बार होने लगता है।तब शरीर से विषैले पदार्थ निकालने के लिए शोधन चिकित्सा की जाती है।कई बार रोगी दवा के साथ परहेज नहीं करते इससे शरीर में दवा ठीक से काम नहीं कर पाती और अशुद्धीयाँ बढ़ने लगती हैं।तब भी शोधन चिकित्सा की जाती है।

इसे ही पंचकर्म चिकित्सा कहा जाता है।पंचकर्म चिकित्सा स्वास्थय की रक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति करा सकता है।आजकल की जीवन शैली बहुत अस्त व्यस्त हो गई है।इस कारण भी अनेकों रोगों की उत्पत्ति होती है।जैसे मधुमेह,हृदयरोग,ब्लडप्रैशर,मोटापा, थाईराईड,हाईपर टैंन्शन जैसे मनोरोग भी होने लगे हैं।यह रोग अब आम होने लगे हैं।जरूरी नहीं जिन्हें कोई रोग नहीं वे स्वस्थ हैं।आयूर्वेद में स्वस्थ वह व्यक्ति है जिसके वात पित कफ तीनों संतुलन में हों,रस,रक्त,अस्थी,मज्ज़ा,माँस,शुक्र,

मेध ये सप्त धातुऐं,मल,मूत्र के सही संवेग और विसर्जन,जिसकी आग्नि समान अवस्था में सन्तुलित है,जिसका मन शान्त और प्रसन्न है वही व्यक्ति स्वस्थ है।आज के विषाक्त और भौतिक युग में ऐसा होना संभव नहीं है।क्योंकि यह संसार अर्थ प्रधान है।भौतिक इच्छा और बेलगाम जीवन शैली स्त्री,पुरुष बच्चे सभी इसमें रत हैं। देर रात तक जागना और देर तक सोना अब हर घर की कहानी है।

ऐसे में पंचकर्म चिकित्सा शरीर को संतुलित और स्वस्थ करने में सहायक है।इस चिकित्सा में पंच कर्म अर्थात पाँच प्रधान कर्म हैं- -वमन,विरेचन,बस्ती,नस्य,रक्तमोक्षणहै।ये ही मुख्य कर्म हैं।पंच कर्म से पहले की जाने वाले कर्म को पूर्व कर्म कहते हैं।और बाद में किए जाने वाले कर्म को पश्चात कर्म कहा जाता है।

पूर्व कर्म में रोगी को दीपन स्न्नेहन,पाचन,स्वेदन चिकित्सा कराई जाती है। पाचन में रोगी को पचाने वाली औषधी,दीपन में अग्नि को बढ़ाने वाली औषधी दी जाती हैं।स्न्नेहन दो तरह से किया जाता है।अभ्यन्तर स्न्नेहन और बाह्य स्न्नेहन।

अभ्यन्तर स्न्नेहन में रोगी के रोग के अनुसार ही धी या तेल,औषधी पीने को दिया जाता है।इसकी मात्रा रोग के अनुसार होती है।जिससे भीतर के दोष संतुलित हो जाएँ।बाह्य अभ्यन्तर में तेल घी की मालिश की जाती है।

इसके बाद पंचकर्म किया जाता है।पश्चात कर्म में रोगी को खान पान,उठने बैठने और कब सोना है ,ज्यादा जोर से नहीं बोलना है ऐसे परहेज व नियम दिए जाते हैं।ब्रह्मचर्य का पालन इन सभी का पालन करना होता है।

अब पंचकर्म के पाँचों कर्मों का वर्णन करते हैं-

  1. वमन- सबसे पहले इस क्रिया को करवाया जाता है।यह कफ दोष और पित दोष को निकालने के लिए वमन करवाया जाता है।इसके लिए औषधी दी जाती है।भूख ना लगना,सर्दी खाँसी कफ होना,मंद अग्नि,मोटापा,हृदय रोग में वमन करवाया जाता है।स्वस्थ व्यक्ति को यह चिकित्सा शुद्धी के लिए करनी है तो चिकित्सक की निगरानी में ही करें।
  1. विरेचन क्रिया-इसमें बढ़े हुए पित,पित दोष के कारण होने वाले रोग जलन,एसीडीटी,बालों का झड़ना,पीलिया,इन सभी रोगों में विरेचन चिकित्सा कराई जाती है।इसमें  रोगी को औषधी द्वारा जुलाब या दस्त करवाए जाते हैं।
  1. वस्ति चिकित्सा- वात को जीतने के लिए सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा है।इसमें रोग के अनुसार रोगी के गुदा द्वार से औषधी से सिद्व ,तेल ,काढ़े,दूध का प्रवेश कराया जाता है।योनी ,गर्भाशय रोगों में योनी से औषधी प्रवेश कराई जाती है।इसमें औषधी और उसकी मात्रा अलग अलग होती है।इसमें शास्त्रों के अनुसार कई विधियाँ और प्रकार होते हैं।यह लकवा पक्षघात,वात रोग,पेट फूलना,कब्ज और अन्य रोगो में इस कर्म को किया जाता है।
  1. नस्य कर्म- नाक ही दिमाग का,सिर का द्वार है।गर्दन के उपर के सभी विकारों में नस्य चिकित्सा की जाती है।कान,नाक,गला,आँख,बाल,या सिर ,स्मरण शक्ति कमजोर होना,टेंशन,गुस्सा,चिड़चिड़ाहट,अनिद्रा सभी रोगों में नस्य चिकित्सा करवा सकते हैं।इसमें नाक में रोग के अनुसार कुछ बूंदें तेल,घी,काढ़े,औषधी की डाली जाती हैं।इसमें अनेकों प्रकार होते हैं।इन्द्रियों को स्वस्थ रखने की यह उत्तम चिकित्सा है।
  1.  रक्तमोक्षण चिकित्सा_ इस चिकित्सा में अशुद्ध रक्त को शरीर से बाहर निकाला जाता है।लीच एक जीव होता है जिसे जोंक भी कहते हैं उसके द्वारा अशुद्ध रक्त को शरीर से बाहर निकाला जाता है।लीच जहाँ दूषित रक्त जमा हो गया है उसे चूस लेती है।इसके मुख में एंटीकुएगुलंग होता है जो खून को जमने नहीं देता इससे खून कुछ देर तक बहता रहता है और दूषित रक्त निकल जाता है।रक्त दोष से जुड़े सारे रोग जैसे सभी चर्मरोग,पित दोष दूर हो जाते हैं।अगर किसी चिकित्सा से रोगों में लाभ नहीं होता तो इस चिकित्सा से अवश्य लाभ होता है।रक्तदान भी स्वंय को स्वस्थ रखने का उपाय है।ये पंच कर्म ही मुख्य कर्म हैं।

इन पंचकर्म के अलावा और भी सरल उप कर्म हैं।जो बहुत ही छोटे छोटे लाभदायक कर्म हैं।जो करवाए जा सकते हैं।इनके नाम हैं-

मन्याबस्ती,शिरोधारा,अगिनिकर्म,जानुबस्ती,कटीबस्ती,कर्णपूरन,नेत्रदपर्ण है।

ये पंचकर्म चिकित्सक की देखरेख में ही होते हैं।स्वंय नहीं किया जा सकता है अन्यथा लाभ के स्थान पर हानी हो सकती है।

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