आदि काल से व्रत रखने की परंम्परा रही है। व्रत कई त्यौहारों पर रक्खे जाते हैं। या हफ्ते में या मासिक अर्थात महिने में आने वाली विषेश तिथियों पर व्रत रक्खे जाते हैं। व्रत में एक समय भोजन किया जाता है। या फिर कई लोग निर्जला एकादशी जैसी विषेश तिथियों पर निर्जल व्रत रखते हैं। यानि सारे दिन अन्न जल खाते पीते नहीं है। शाम को एक समय फलहारी भोजन करते हैं। व्रत का संबध धर्म से है। देवी देवता की कृपा प्राप्ति हेतू व्रत किया जाता है। धर्म का संबध मानव हित से है। कई लोग समझ नहीं पाते कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए भूखा रहना क्यों जरूरी है? क्या हमारे भूखे रहने से भगवान प्रसन्न हो जाऐंगे?
अनेकों गलत धारणाऐं जन मानस में फैली हुई हैं, जिन्हें जानकारी के आभाव में और गलत तरीके से फैलाया जाता है।
व्रत का संबध धर्म से है। और मानव और उसके स्वास्थय से भी है। व्रत एक संकल्प है,स्वंय के अनुशासन और संयम का। हम समय बेसमय कुछ भी खाते पीते रहते हैं। स्वाद के चक्कर में कुछ भी खा पी लिया। यह भी नहीं देखा कि वह खान पान स्वास्थ और शरीर के लिए लाभकारी भी है कि नहीं। उससे शरीर को क्या नुकसान हो रहा है कभी परवाह भी नहीं करते। तब हमारे पूर्वजों ने व्रत रखने की परंम्परा बनाई। कि किसी विषेश तिथि पर उस दिन शरीर और पाचन संस्थान को विश्राम देंगे। और यही नहीं उन खास दिवसों पर व्रत करने से धार्मिक लाभ भी प्राप्त होगा। उस दिन विषेश के देवता भगवान उस विषेश तिथि पर पूर्ण उर्जावान होते हैं। अपनी कृपा बरसाने को मानव मात्र पर बरसाने को आतुर रहते हैं। बस उस कृपा को प्राप्त करने की विधी पता होनी चाहिए।
व्रत करने से स्वास्थ पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। सही व्रत रखने से हमें शारिरिक ,मानसिक , और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। इससे हमारे देवी देवता प्रसन्न होकर आर्शीवाद देते हैं।
व्रत रखने से शरीर का कचरा बाहर निकल जाता है। इससे हमारा शरीर हल्का और निरोगी होने लगता है। हमारा मन शान्त स्थिर और स्वस्थ होता है। व्रत तीन प्रकार से रक्खा जाता है,फलाहार,रसाहार,एकाहार है।
फलाहार में ताजे मौसमी फलों का ही सेवन किया जाता है। कोई भी तीन चार फल दिन में एक से तीन बार लिए जा सकते हैं। इससे ज्यादा सेवन ना करें। इसमें सूखे मेवे जैसे किशमिश,मुनक्का,खजूर,अंजीर,
छुआरे इनको रात को भिगोकर अगले दिन व्रत में सेवन किया जा सकता है। रसाहार में मौसमी फलों का एक गिलास रस दिन में चार बार सेवन किया जा सकता है।
एकाहार में जो लोग केवल फल पर नहीं रह सकते हैं वे एक समय शाम को भोजन व दिन में फल और जूस ले सकते हैं। इन आहारों से मन भक्ति में लीन रहता है। कुछ लोग सारे दिन कुछ नहीं खाते पीते हैं। या फिर सिर्फ जल पर रहते हैं। यह सबसे उत्तम व्रत है। कुछ लोग व्रत के नाम पर भरपेट मिठाई, नमकीन,चिप्स तला भुना गरिष्ठ भोजन करते हैं जो गलत है। इससे व्रत और स्वास्थ दोनों की हानी होती है।
व्रत के काल में अपने देवी देवता का पूजन,ध्यान ,भजन करना चाहिए। खाली पेट उनकी उर्जा शक्ति सारे शरीर मन आत्मा पर शुभ प्रभाव डालती है। और हमारे भीतर अपने मनोरथ पूरा करने की शक्ति आती है।
यही व्रत का शुभ प्रभाव है। जब तन मन आत्मा स्वस्थ होगी तो हम हमारे कार्य स्वतः ही पूर्ण कर लेंगे। ईश्वर का कार्य हमें इस योग्य बनाना है। यही व्रत पूजन का उद्देश्य है।
व्रत गर्भवति महिला,अतिवृद्ध,छोटे बालकों को नहीं रखना चाहिए। व्रत एक स्वम पर संयम रखने की एक कला है अपने ही हित के लिए। इसलिए मन मार कर नहीं बल्कि प्रसन्नता और श्रद्धा से व्रत रखना चाहिए।