Story of Ganesha and Mushak in Hindi: यह घटना Dwapar युग की है और इस कथा का विवरण Ganesh Puran में मिलता है। एक दिन देवराज Indra के दरबार में गहन चर्चा चल रही थी। दरबार में उपस्थित समस्त देवगण चर्चा में लीन थे। किंतु क्रौंच नामक गंधर्व अप्सराओं के साथ हँसी-ठिठोली कर रहा था। जब देवराज Indra की दृष्टि क्रौंच पर पड़ी, तो वे क्रोधित हो उठे और उसे Mushak बन जाने का श्राप दे दिया।
मूषक बना क्रौंच स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक में पराशर ऋषि के आश्रम में आ गिरा। स्वभाव से चंचल क्रौंच ने ऋषि आश्रम में उत्पात मचा दिया। उसने मिट्टी के समस्त पात्र तोड़ डाले, उसमें रखे अन्न का भक्षण कर लिया, ऋषियों के वस्त्र कुतर दिए और आश्रम की सुंदर वाटिका उजाड़ दी।
मूषक के इस उत्पात से पराशर ऋषि चिंतित हो गए और उससे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना लिए गणेश जी की शरण में पहुँचे।
Ganeshji ने पराशर ऋषि की प्रार्थना स्वीकार कर ली और Mushak रूपी क्रौंच को पकड़ने के लिए एक तेजस्वी पाश फेंका। पाश के बंधन से बचने के लिये क्रौंच पाताल लोक भाग गया। किंतु पाश ने पाताल लोक तक उसका पीछा किया और उसे बांधकर गणेश जी के समक्ष ला खड़ा किया।
साक्षात Ganeshji को अपने समक्ष देख क्रौंच भयभीत हो गया और अपने प्राणों की भिक्षा मांगने लगा। तब Ganeshji बोले, “तूने पराशर ऋषि के आश्रम में बहुत उत्पात मचाया है, जो क्षमायोग्य तो नहीं है। किंतु मैं शरणागत की रक्षा अपना परम धर्म मानता हूँ। तुम्हें जो वरदान चाहिए मांग लो।”
Ganeshji की इस बात पर क्रौंच का अहंकार जाग उठा और वह बोला, “मुझे किसी वरदान की आवश्यकता नहीं है। आप चाहे तो मुझसे कोई वर मांग लें।” अहंकारी क्रौंच के इस कथन पर Ganeshji मंद-मंद मुस्कुराये और बोले, “ऐसा ही सही। मैं तुझसे अपना वाहन बन जाने का वर मांगता हूँ।”
क्रौंच के पास कोई अन्य विकल्प न था। अपने कथन अनुसार वह Ganeshji का वाहन बन गया। Ganeshji जैसे ही Mushak रुपी क्रौंच पर बैठे, उनके भारी शरीर से वह दबने लगा और उसकी प्राणों पर बन आई। उसका सारा अहंकार चूर-चूर हो गया। उसने Ganeshji से याचना की कि वे अपना वजन वहन करने योग्य कर लें। गणेश जी ने वैसा ही किया।
उस दिन से Mushak गणेश जी का वाहन बन गया और सदा उनकी सेवा में लगा रहा. गणेश जी के वाहन के रूप में उसका नाम ‘डिंक’ पड़ा। गणेश जी की मूषक पर सवारी स्वार्थ पर विजय का संकेत है।