Punya Meaning in Hindi: हम आदि काल से Paap और Punya की बात करते हैं? क्या कारण है कि मानव जाति पाप और पुण्य पर भरोसा करते हैं। इससे मिलने वाले परिणाम को गंभीरता से लेते हैं। हम सभी जानते हैं अच्छे कर्म का फल अच्छा और बुरे कर्म का फल बुरा होता है। यह संस्कार हम अपने बच्चों को अवश्य देते हैं। अगर नैतिकता की बात करें तो यह संस्कार अवश्य ही बच्चों को देने चाहिए। क्योंकि बुरे कर्म हमेशा पतन के ,दुख के मार्ग पर ही ले जाते हैं। एक ना एक दिन उसका फल भुगतना पड़ता है। अपराधी चाहे कितना बचे एक ना एक दिन पकड़ा जाता है। और अच्छे कार्य सुगंध की तरह हैं जो मान प्रतिष्ठा सुख आनंन्द में अवश्य ही वृद्धि करते हैं।
पुण्य क्या है? Punya ka Matlab kya hota hai
अपने हृदय की पवित्रता से,निष्काम,निस्वार्थ भाव से किया गया कोई भी नेक कर्म ,जो किसी दूसरे के लिए हितकारी हो वे पुण्य हैं। हमारे शास्त्रों में अनेकों पुण्य कार्य बताए गए हैं। उनमें से मुख्य पाँच कर्म निम्न लिखित हैं:
- अन्नपुण्य : सबसे बड़ा पुण्य अन्नपुण्य है। किसी भूखे जानवर या मनुष्य को भोजन देना सबसे बड़ा पुण्य है। किसी को भोजन देने में मन में विनम्रता और दया भाव होना चाहिए। निस्वार्थ निष्काम भाव से पर हित की भावना से किया यह पुण्य सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है।
- शयन पुण्य : निराश्रय,बेघर पशु पक्षी या मानव को आश्रय देना या उसके आश्रय की व्यवस्था करना शयन पुण्य कहलाता है।
- वचन पुण्य : किसी दुखी व्यक्ति को अपने वचनों द्वारा सुख पहुँचाना, सहानूभूति,प्रोत्साहन देना वचन पुण्य है। किसी को वचन देकर पीछे ना हटना भी वचन पुण्य है।
- नमस्कार पुण्य : अपने गुरूजनों,माता पिता,बुर्जगों के चरण स्पर्श करना, आर्शीवाद लेना,उनको प्रणाम करना नमस्कार पुण्य है। दूसरों के प्रति प्रेम स्नेह रखना पुण्य है।
- मानस पुण्य : मन से पवित्र रहना,मन में हिंसा व्यभिचार के भाव ना लाना मानस पुण्य है।
जब हम Punya कर्म करते हैं तो हमारा मन पवित्र रहना चाहिए। क्योंकि दिखावे,स्वार्थ और कुटिल भावों से युक्त पुण्य नहीं कहलाता। वह व्यवसाय हो जाता है। पाप पुण्य का अस्तित्व अवश्य है। जिन लोगों ने उसे अनुभव किया है वे इस पर विश्वास करते हैं। अच्छे जीवन साथी,अच्छी योग्य सन्तान, मन में सन्तोष भाव,प्रसन्नता आनंन्द जीवन में रहना ये पुण्य का ही प्रभाव है। यह पुण्य का ही प्रभाव है कि मन सदैव अच्छे कार्यो में लगता है। और धर्म और ईश्वर पर आस्था रखता है। यह आस्था ही पुण्य का फल है।