हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है।वायू जल अग्नि आकाश पृथ्वी तत्व से।इस पद्दति से आसाध्य रोगों का सफलता पूर्वक इलाज किया जा सकता है।इसमें किसी दवा की जरूरत नहीं होती।जब पंच तत्वों में से किसी एक तत्व की कमी होती है तो विभिन्न प्रकार के रोग होते हैं।
इसके अलावा हमारा खान पान जो हम खाते हैं वह ठीक से पच नहीं २हा तो भी रोग उत्पन्न होते हैं।
क्योंकि अपचा खाना सड़ने लगता है और तरह तरह के विषैले पर्दाथ पैदा होने लगते हैं।जो मधुमेह,ब्लडप्रैशर,अनिद्रा,कब्ज ,फैटी लीवर,त्वचा की बीमारी और अनेकों प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं।
आजकल ज्यातर लोग कम मेहनत करते हैं।एक ही जगह ज्यादा देर तक बैठकर काम करना,या ज्यादा देर तक खड़े रहकर काम करना,ज्यादा लेटे रहना,तनाव,और अनियमित दिन चर्चा भी कई प्रकार के हडियों,मांसपेशियों और मानसिक रोगों को पैदा कर रहे हैं।
बार बार खाँसी, बुखार,जुखाम,फोड़े फुंसी संकेत हैं शरीर की ओर से कि शरीर में विष जमा हो रहा है जिसे निकालना जरूरी है।शरीर में पेदा होने वाले यह लक्षण अगर दवा लेकर दबा दिए जाते हैं तो यह धीरे धीरे एक भंयकर रोग का रूप ले लेते हैं।
जैसे हार्ट अटैक,स्ट्रोक,लकवा ,दिमाग की नस फट जाना जैसे रोग जो अचानक ही व्यक्ति में हो जाते हैं।और रोगी इलाज से पहले ही मर जाता है।प्राकृतिक चिकित्सा में रोगी की स्थिति देखकर डाक्टर उसका उपचार करते हैं।पहले उसकी जीवन शैली खान पान और रोग सबका विस्तृत विवरण लेते हैं ।फिर उसकी प्रकृति के अनुसार उसका उपचार किया जाता है।
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पंच तत्वों द्वारा उसका उपचार किया जाता है।जैसेमिट्टी द्वारा इलाज में मिट्टी का ठंण्डा गर्म लेप रोग के स्थान पर लगाया जाता है।मिट्टी में चलाया जाता है।इससे अनेकों चर्मरोग,पेट के रोग,कैंसर,बवासीर,सिर के रोग में लाभ मिलता है।
जल से चिकित्सा में गर्म जल से कुंज्जल क्रिया करवाई जाती है।जिसमें गर्म जल चार पाँच गिलास पिला कर उल्टी करवाई जाती है।जिससे मीतर की सफाई हो सके।गर्म जल या ठंण्डे जल में खड़े या लेटा कर शरीर के रोम कूप की सफाई की जाती है।इसके सिवा कई तरह के बाथ सिस्टम होते हैं जिनमें रोगी का इलाज किया जाता है।
आकाश तत्व में रोगी को उपवास कराया जाता है।इससे हमारे पेट की पाचन क्षमता को आराम मिलता है।
क्योंकि सारे रोगों की जड़ यही है।अग्नि तत्व में सूरज की किरणों का स्नान कराया जाता है।इसमें प्रभावित शरीर के अंग में लेप लगा कर धूप में बिठाया जाता है।इसके अलावा गर्म ठंण्डे सेक से भी इलाज किया जाता है।
इसके सिवा खान पान के विषय में डाक्टर सलाह देते हैं।रोगी के रोग के लिए उनसे लगातार प्रोत्साहन देते २हते हैं।प्राकृतिक चिकित्सा में फल,सब्जिंयाँ,मेवे,दालें,अनाज,प्राकृतिक कच्चे भोजन पर अधिक बल दिया जाता है।
इसके सिवा वात,पित,कफ का संतुलन शरीर में बना रहे इस पर भी बल दिया जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा की यह संक्षिप्त जानकारी है।पर इसका लाभ और जानकारी अथाह है।यह चिकित्सा रोग पर जड़ से प्रहार कर उसे समाप्त करने की क्रिया है।