Lingaraj Temple History in Hindi: आज हम आपको बतायेगे भुवनेश्वर में स्तिथ लिंगराज मंदिर के बारे में यह भुवनेश्वर का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है वहाँ के आस- पास स्तिथ सभी मंदिरों में से यह मंदिर सबसे श्रेठ है इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में ययाति केशरी द्वारा करवाया गया परन्तु इस मंदिर का स्वरूप 12वीं शताब्दी में बन कर तैयार हुआ माना जाता है यहाँ पर कुछ स्वरूप ऐसे भी पाए गए जो 1400 वर्ष से भी अधिक पुराने है।
लिंगराज मंदिर का इतिहास:
लिंगराज मंदिर का इतिहास इस प्रकार है माता पार्वती ने दो राक्षसों का वध उस स्थान पर किया था जिनका नाम था लिट्टी और वसा इनके बढ़ते आतंक को देखकर माता पार्वती का भगतों द्वारा आवाहन किया गया तब माँ पार्वती ने इनका वध किया था। उसके बाद माता पार्वती को प्यास लगती है तब भगवान शिव ने एक कूप बनाया और सभी पवित्र नदियों से उस कूप में अपना योगदान देने को कहा और वह आज एक सागर के रूप में जाना जाता है जिसका नाम है बिंदुसागर।
इस बिंदुसागर के पास मे एक मंदिर है जिसका नाम है लिंगराज कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है परंतु यहाँ पर इस मंदिर का आधा भाग शिव जी का और आधा भाग विष्णु जी का है। नीचे का भाग भगवान शिव का है और ऊपर का भाग भगवान विष्णु का है क्योकि यहाँ विष्णु जी भगवान शालिग्राम के रूप में विराजमान है।
लिंगराज मंदिर की नक़्काशी:
लिंगराज मंदिर का ऊपर का भाग पिरामिड के आकार में दिखाई देता है। लिंगराज मंदिर का निर्माण करते समय कलिंग और उड़िया शैली का ख़ास ध्यान रखा है। इस मंदिर के शिखर पर उल्टी घंटी और कलश स्थापित किया गया है। इस मंदिर को बलुआ पत्थर से बनाया गया है।
लिंगराज मंदिर में शिवलिंग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें:
यह शिवलिंग ग्रेनाइट से बना हुआ है। और यह आठ फ़ीट मोटा और एक फीट ऊँचा बना हुआ शिवलिंग है। कहा जाता है जो 12 ज्योतिर्लिंग पाए जाते है उनका प्रभाव इस्क लिंगराज में भी देखने को मिलता है इसलिए ही इसको लिंगराज कहा जाता है।
मंदिर को कितने भागो में विभाजित किया गया है:
मंदिर को चार भागो में बाटा गया है :
पहला भाग- गर्भ गृह
दूसरा भाग- यज्ञ शैलम
तीसरा भाग- भोगमंडप
चौथा भाग- नाट्यशाला
यहाँ पर आने वाले भगत सबसे पहले बिन्दुसरोवर में स्नान कर अपने आप को शुद्ध करते है उसके बाद भगवान वासुदेव के दर्शन करते है उस्केक बाद गणेश पूजा में सम्मलित होकर अंत में लिंगराज के दर्शन करते है।