लक्ष्मी अर्थात श्री और श्री की आवश्यक्ता प्रत्येक मानव को है।चाहे गृहस्थ हों या संन्यासी सभी बिना श्री के तेजहीन,बलहीन,और व्यर्थ हैं।
श्री का सही अर्थ क्या है?
हमारे पूर्वज अच्छी तरह जानते थे कि श्री तत्व हमारे जीवन में अत्यंत उपयोगी है। इसलिए उन्होंने श्री साधना संम्पन्न की।लक्ष्मी के आठ स्वरूप होते हैं। ये आठ स्वरूप हैं:आदी लक्ष्मी,धन लक्ष्मीं,धान्य लक्ष्मी,गज लक्ष्मीं,संन्तान लक्ष्मी,वीर लक्ष्मी,जय लक्ष्मीं,विद्या लक्ष्मी हैं। और इन्हीं आठ स्वरूपों को पूर्णताः प्राप्त करना ही मानव जीवन की पूर्णता है। वे आठ स्वरूप की साधना करने से इन सौभाग्य की प्राप्ति होती है:आरोग्य, विद्या, सुयोग्य संन्तान, धर्म, शत्रु बाधा निवारण, मान प्रतिष्ठाऔर अनंत धन संम्पदा। यह सभी तत्व मानव जीवन में हों तभी मानव जीवन सफल होता है।जैसे:
आरोग्य:जीवन में सारे सुख भोगने के लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है। अगर इसका महत्व नहीं समझा तो फिर यही होगा सब कुछ है पर उसका सुख घर के नौकर चाकर उठाते हैं। व्यक्ति बस बिस्तर पर पड़ा लाचार देखता रहता है। विद्या: मनुष्य को समाज में रहने के लिए,कमाने के लिए विद्या आवश्यक है। विद्या के बगैर यह जीवन कठिन और बोझ समान है।विद्या हमें सद्गुण प्रदान करती है।
सुयोग्य संन्तान:सुयोग्य आज्ञाकारी संन्तान हमारे जीवन और चरित्र का दर्पण है। सबकुछ कमाकर अगर अयोग्य सन्तान को दिया तो वह उस धन संपत्ति को बरबाद कर देगी। या सन्तान ना होना भी बहुत बड़ा कष्ट है। सन्तान लक्ष्मी सन्तान प्राप्ति और संतान के लिए सहायक है।
समाज में मान प्रतिष्ठा:धन तो कमाया पर मान सम्मान नहीं है। कोई संबध नहीं रखना चाहता। पीठ पीछे सभी बुराई करते हैं। तो फिर ऐसा जीवन जीने से क्या लाभ। इसलिए समाज में मान प्रतिष्ठा भी आवश्यक है।
धर्म: मानव जीवन में धर्म का वही स्थान है जो देह में प्राणों का है। जहाँ धर्म है वहाँ सतकर्म,सत्य,दया,परोपकार और ईश्वर कृपा,आत्मबल,साहस है।
शत्रू बाधा निवारण: सब कुछ है पर ईष्या द्वेष वश अनेकों प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष शत्रू नित्यप्रति बाधा डालते हैं,तो कभी काम बिगाड़ देते हैं। ऐसे शत्रुओं पर विजय पाने में विजय लक्ष्मी सहायक है।
अटूट धन संम्पत्ती की प्राप्ति: सभी तत्वों के बाद धन संम्पत्ति की प्राप्ति को स्थान मिलता है। हमें अटूट धन सम्पत्ति मिले अटूट अर्थात निरंतर बिना रूके धन आता रहे। आये भी और टिके भी। वह धन परिवार का पालन पोषण,धर्म कार्य,परहित में,व अपनी व अपने परिवार की सुयोग्य इच्छाओं में लगे। हमारा धन शराब,जुआ,परस्त्री गमन,व आसामाजिक तत्वों या कार्य में ना लगे,यह प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी का अनादर होता है।और माता लक्ष्मी रूठ कर चली जाती हैं।