जो शुद्ध हैं,सात्विक हैं,जो धर्म का पालन करते हुए ब्रह्म के सामन आचरण रखते हैं, वे ही ब्राह्मण हैं।मंदिर,समाज और उसकी व्यवस्था एक अटूट कड़ी हैं।जो युगों से चली आ रही है।मंदिर एक बड़ी संस्था है। जो बहुत से व्यक्तियों के योगदान से कार्य करती है।और इनमें पुजारी मंदिर में देव पूजा और व्यवस्था में महत्वपूर्ण सहयोग देते हैं।हमारे आस पास के मंदिर के पुजारी, मंदिर ही नहीं समाज में भी प्रत्येक संस्कार में सहयोगी होते हैं।
ऐसा कोई भी संस्कार या शुभ कार्य नहीं है जिसमें उनका सहयोग ना हो।जन्मसंस्कार,नामकरण,प्रयोजन,विवह संस्कार,मृत्यु के बाद के दाह संस्कार,तेरह दिनों तक पाठ,पगड़ी रस्म,पितृ दिवस में तपर्ण आदि ये ही संम्पन्न कराते हैं।हमारे जीवन में अनेकों अवसरों में भी वे शुभ कर्म कर हमें आशीष देते हैं।
गृह प्रवेश,दुकान,आफिस में सर्वप्रथम ये ही पूजन कर शुभ देव शक्तियों का आवाहन कर उनकी स्थापन करवाते हैं।सर्व देवों ग्रह नक्षत्रों का पूजन हवन कर उनकों तृप्त व प्रसन्न कर उनका आर्शीवाद यजमान को प्राप्त करवाते हैं।कोई विशेष अवसर,मूर्हत हो तो घर में यज्ञ पूजन भी इनके द्वारा ही होता है।
कन्या हो या पुत्र उनकी जीवन साथी से जन्मपत्री का मिलान आज भी यही करते हैं।कौन से शुभ कार्य को किस शुभ मूर्हत में करें या विवाह के शुभ मर्हूत हो या विवाह पत्रिका ये ही सभी कार्य सम्पंन्न करवाते हैं।
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जिसके घर में बहन बेटी नहीं होतीं तो शुभ अवसरों पर उनके कार्य ब्राहमणी या ब्राहमण संम्पन्न करवा सकते हैं।घर में कथा का आयोजन हो या कोई भोज वह इनसे ही आरंम्भ होता है।और इनके द्वारा ही संम्पन्न होता है।
दान,धर्म,व देव कार्य इनके बगैर सम्पंन्न नहीं होते। एक ब्राहमण ही हैं जो संतोषी होते हैं।उन्हें जो भी ,जितना भी मिले उसी में सन्तुष्ट हो जाते हैं।एक ब्राहमण पूरी तरह मंदिर व समाज में होने वाले समस्त धर्म कार्यों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होता है।उसका घर परिवार इसी से मिलने वाली दक्षिणा,अन्न वस्त्र से ही चलता है।
हमारा सनातन धर्म कहता है कि,ब्राहमण हमारे धर्म के महत्वपूर्ण अंग हैं।वे धर्म कार्य,मंदिर थवस्था,पूजन करते रहें उसके लिए उनको दान दक्षिणा का प्रवाधान बनाया गया।और यह अत्यंत आवश्यक भी है।
आखिर क्यों हम ब्राहमण को बड़ी दक्षिणा दें?
एक पूजा के इतने पैसे?
ब्राहमण भी समाज में २हते हैं।उन पर भी परिवार की जिम्मेदारी होती है।अगर वे मात्र परिवार के लिए अर्थ व्यवस्था में ही जुट जाएंगे तो हमारे शुभ अवसरों और संस्कारों को कौन सम्पंन्न कराऐगा?कल्पना कीजिए विवाह तो कोर्ट में हो सकता है पर दाह संस्कार के लिए क्या होगा?क्या अपने प्रिय जनों को यूँ ही छोड़ देंगे?
कितने ही अवसर जब हमें उनकी आवश्यक्ता होगी तब मनमाने ढंग से किया कार्य संन्तुष्टी देगा?जो सनातन धर्मी हैं वे अपने देवों का ,घर्म का मूल्य महत्व अवश्य जानते हैं।
माँल,सिनेमाघरों,रैस्टोरेंट, पिज्जा,मेंहंगे मोबाइल फोन,और गौर जरूरी ब्रॉंडेड कपड़े में जो अनावश्क खर्च होते हैं वे हमें कभी नहीं चुभते। वे हमारे जीवन में घुन की तरह भीतर से हमें खोखला कर रहे हैं।पर एक ब्राहमण की दक्षिणा पर प्रश्न एक सच्चा सनातन धर्मी कभी भी नहीं उठा सकता।
क्योंकि उसे मालूम है कि ये ब्राहमण देव ही हैं जो पूर्ण सनातन रीति से पूजन सम्पन्न करवा कर देवताओं से हमारे परिवार,घर,व्यवासाय,आरोग्य,बाधा निवारण,ग्रह दोष हों या कोई विपदा ये ही उनके निवारण में सहयोगी होते हैं।इनका मान सम्मान देवों का सम्मान है।इनको दी जाने वाली दक्षिणा हमारे पुण्यों में वृद्धि करेगी।इनका आर्शीवाद मेरे घर में सुख,शान्ति,वैभव में वृद्धि करेगा।
हम ब्राहमण को मात्र मान सम्मान दान दक्षिणा नहीं दे रहे।हम अपने सनातन धर्म को भी पुष्ट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।एक ब्राहमण जब आर्थिक रुप से पुष्ट होगा तो वह अपने कार्य के प्रति पूर्ण समर्पित होगा।हमारे मंदिर,देव उनकी सेवा,व्यवस्था,पूर्ण रूप से होगी।हमारे शास्त्र,उनका ज्ञान,पूजन,हवन समाज में हमारी सन्तान को संस्कारित करेगा।
यह सनातन धर्म ही हमारी पहचान हैं।
और ब्राहमण इसके महत्वपूर्ण अंग हैं।