इस विषय में प्रसंग महाशिव पुराण से आता है।देवताओं और असुरों में एक गठबंधन हुआ कि वे दोनों मिलकर समुंद्र का मंथन करेंगे।उन्होंने मंदराचल पर्वत की मथानी बना कर समुद्र में उतार दिया।व वासुकी नाग को उसकी रस्सी बनाकर पर्वत पर लपेट दिया गया।दोनों पक्षों में यह तय हुआ था कि समुद्र में से जो भी निकलेगा वह आपस में बाँट लिया जाऐगा।
समुद्र को मथा गया और उसमें से कालकूट विष निकला।जो इतना भयंकर था कि वह जहाँ भी गिरता वहाँ विनाश तय था।उस विष से भंयकर गंध और गैस निकल रही थी।जिसके प्रभाव से सारे पशु पक्षी मरने लगे।
चारों ओर हाहाकार मच गया।समस्त संसार पर मृत्यु का भय आतंक छा गया।किसी भी देवता और असुर में इतनी क्षमता नहीं थी कि वे इस विष का सामना कर सकें।इसका निवारण तो बहुत दूर की बात थी।
सभी देवताओं ने आपसी परामर्श कर भोले महादेव जो देवों के भी देव हैं उनके पास जाने का निर्णय लिया।उन्होंने सोचा कि वे अवश्य ही इसका कोई समाधान बताएंगे।वे सभी देवता इस विष के निवारण का उपाय पूछने महादेव के पास गए।उन्होंने उन्हें प्रणाम कर विष के विषय में बताया।
यह भी बताया कि इसके भंयकर प्रभाव के कारण सृष्टि पर प्रलय का संकट आ गया है।महादेव अति भावुक और करुणा से भर गए।वे संसार के हित के लिए विषपान करने को तैयार हो गए।महादेव ने सारे विष को पी लिया।तभी पार्वती जी ने महादेव को तुरन्त रोका और उनका कंठ पकड़ लिया।वे चिन्तित होकर बोली प्रभू आप यह क्या अनर्थ कर रहे हैं।यह भंयकर विष आपके कंठ से नीचे गया तो आपके लिए घातक होगा।कृपा करके यह विष यहीं रोक लें।
भागवान शिव ने योग बल से वह विष अपने कंठ में ही रोक लिया।व सदा के लिए वहीं धारण कर लिया।विष के दुष्प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया।इसी कारण उनका एक नाम नीलकंठ भी है।विष ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू किया।विष की ज्वाला से भगवान शिव का शरीर गर्म हो जलने लगा।यह देख कर देवराज इंद्र ने जल की वर्षा शुरू कर दी।और महादेव पर विष का प्रभाव समाप्त हो गया।उन्हें शीतलता का अनुभव हुआ।
उन्होंने देवराज इन्द्र पर प्रसन्न होकर कहा कि यह समय श्रावण मास कहलाएगा।और जो भी भक्त मुझे जल अर्पण करेगा इस मास में उस पर मेरी कृपा अवश्य होगी।श्रावण मास भगवान शिव का प्रिय मास है।क्योंकि उन्हें जल वर्षा और जलाभिषेक अत्यंत प्रिय है।श्रावण मास में भगवान शिव को चन्दन,बेलपत्र,पुष्प,चढ़ाए जाते हैं।उन्हें दूध से बना नवैध और फल चढ़ाए जाते हैं।धूप दीप से आरती पूजन हाेता है।
यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ श्रावण मास मेंपृथ्वी पर भ्रमण करते हैं।भक्तों की पूजा स्वीकार कर उन्हें आर्शीवाद देते हैं।उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।श्रावण मास में आने वाले सोमवारों का विशेष महत्व हाेता है।इन दिनों व्रत रखने और शिव पूजन का विधान होता है।
अतः प्रत्येक सनातन धर्मी को इस मास में शिव पूजन अभिषेक अवश्य करना चाहिए।श्रावण मास प्रतीक है महादेव के महान त्याग का।उन्होंने लोक हित के लिए स्वंय विषपान कर अपने ही प्राणों को दाव पर लगा दिया। वे इतने कृपालू हैं,भोले हैं कि भक्तों की रक्षा करने व उन पर कृपा करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
इसलिए भक्त उन्हें प्रेम से भोलेनाथ भी कहते हैं। भगवान महादेव और माता पार्वती सदैव संसार के कल्याण के लिए प्रयासरत रहे हैं।इसलिए सारा संसार उनकी पूजा अर्चना करता है।इसीलिए सारे विश्व में सबसे अधिक उनके मंदिर हैं।