खाना चलते फिरते,लेटकर,या खड़े हो कर नहीं खाना चाहिए। खाना जमीन पर बैठ कर थाली को भी जमीन पर रक्ख कर खाना चाहिए। लेटकर या चलकर खाना खाने से खून का दौरा पूरे शरीर में तेजी या धीमे से होता रहता है। जमीन पर बैठकर खाने से खून का दौरा पेट तक रहता है जो जरूरी है। जमीन पर रक्खी थाली में भोजन खाने के ल़िए बार बार झुकना पड़ता है। और झुकने पर दबाब पड़ना और सीधे होने पर आँते खुल जाती हैं,यह क्रिया पाचन में सहायक है और कब्ज नहीं होने देती। जमीन पर बैठ कर खाने से अतिरिक्त भोजन नहीं खाया जा सकता। पेट को आधा खाली रहना चाहिए। चौथाई पेट पानी से और चौथाई पेट हवा के लिए खाली रहना चाहिए।
वजन कम करना है। और पेट भी बाहर नहीं निकले इसके लिए जमीन पर बैठ कर और जमीन पर थाली रखकर भोजन करना चाहिए। कुर्सी पर बैठकर खाने से पेट ढीला रहता है। जिससे अतिरिक्त खाना खाया जाता है। जिससे पेट पर वजन पड़ता है। पूरा खाना हजम नहीं होता और वह बचा खाना सड़कर अनेक रोगों को जन्म देता है।
खाना खाने से पहले हाथ कोहनी तक,पैर पिडली तक,और मुख कानों तक धो लेना चाहिए। इससे किटाणू समाप्त होते हैं। इससे रोग नहीं होते। शरीर का तापमान कम हो जाता है। इससे आँखों की रौशनी और जीवनी शक्ति तीव्र होती है।
खाना खाने से पहले दो दो घूंट पानी 32. 32 बार कुल्ला करके पी लेना चाहिए। दिन भर कुछ ना कुछ खाने पीने या ध्रुमपान करने से लार बननी कम हो जाती है। इस तरह कुल्ला करने से लार बनने लगती है और पाचन रसायन पैदा होने लगते हैं जो भूख बढ़ाते हैं और खाना पचाते हैं। और पेट के रोगों से लड़ने में सहायक हैं। पानी घूंट घूंट करके पीना चाहिए।
बहुत गर्म खाना या बहुत ठंण्डा खाना दाँतों और आँतों को नुकसान करता है। इससे बाद में अनेकों बीमारियों को पैदा करता है। सामान्य तापमान पर आने के बाद ही भोजन करना चाहिए। भोजन के साथ हरी मिर्च कई रोगों से बचाव करती है। वही खाना चाहिए जो स्वास्थ और प्रकृति के अनुसार,अपने कार्य के अनुसार ,ऋतु के अनुसार भोजन करना चाहिए। जो आसानी से पच जाए। भोजन बदल बदल कर करना चाहिए। अंकुरित दालें अनाज संतुलित मात्रा में खाने से लाभ मिलता है।
भोजन चबा चबा कर खाना चाहिए व पानी घूंट घूंट पीना चाहिए। भोजन पकाने के लिए लोहे के बर्तन और खाने के लिए काँसे के बर्तन प्रयोग करने स्वास्थ के लिए लाभकारी होते हैं। लोहा आयरन की कमी पूरी करता है। काँसा वात पित कफ को संतुलित करता है। ताँबा इनके गुणों की रक्षा करता है। खाना नियत समय पर या बहुत भूख लगने पर खाना चाहिए। भोजन सूर्य ढलने के बाद नहीं करना चाहिए। खाना खाने के बाद छाछ पीनी चाहिए। भोजन प्रसन्न मन से करना चाहिए। भोजन की कभी निन्दा नहीं करनी चाहिए। शान्ति से भोजन करना चाहिए। यह स्वास्थ की रक्षा करता है। हमारे और दूसरे के भाव का प्रभाव भोजन पर पड़ता है। इसलिए भोजन एकान्त में करना चाहिए।